देखो, सारी बातें एक तरफ़ हो सकती हैं लेकिन याद रखो कि ज़िंदगी का हर दिन, हर लम्हा, हर पल, हर क्षण खतम हो रहा है । जी लोयार !
- सपना जैन
@mankiudaanbysapnajain
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देखो, सारी बातें एक तरफ़ हो सकती हैं लेकिन याद रखो कि ज़िंदगी का हर दिन, हर लम्हा, हर पल, हर क्षण खतम हो रहा है । जी लोयार !
- सपना जैन
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कहानी : श्रोता- वक़्ता
लेखक : डॉ. मधुकर गंगाधर
वक़्ता : सपना जैन
@ManKiUdaanBySapnaJain
ऐ स्त्री ! थोड़ा ठहर तो सही is a poem dedicated to all those women who always try to be a Super Women sacrificing their existence even if she is Mother, Wife, Daughter, Sister, Housewife or Professional.
Be YOU ❤️
Poetry by Sapna Jain
@mankiudaanbysapnajain
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This is पहला पत्र ज़िंदगी के नाम - वह सहेली
परवाह करो उसकी
जो तुम्हारे साथ है
क्योंकि बहुतों को वो भी नसीब नहीं है
जो तुम्हारे पास है
- सपना जैन
@mankiudaanbysapnajain
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Although this is my feeling but many of you can connect with this feeling.
@ManKiUdaanBySapnaJain
The Poetry “चहेता मुसाफ़िर” is a free style poem dedicated to life of everyone from the heart of the poetry writer Sapna Jain. You can relate it with you in your own perception.
एक दिन ज़िंदगी के एक चहेते मुसाफ़िर ने ज़िंदगी से पूछा
ताश के पन्ने सी बिखर जाएगी
ऐ ज़िंदगी तू कब निकल जाएगी
तेरे लिए मैं जीता आया अब तक
पर लोग कहते हैं कि तू तो बेवफ़ा है
क्या वाक़ई ऐसा है ?
तू ही बता ना
दुनिया पर मुझको कोई यक़ीं नहीं है
बस तू एक बार बोल दे अपने इरादे
तू मेरी है या पराई
एक बार तो मुँह खोल दे
तेरे लिए ही जीता आया हूँ अब तक
एक बार तो कुछ बोल दे
ज़िंदगी मुस्कुरायी
फिर खिलखिलायी
और फिर बोली
ऐ मुसाफ़िर, तेरा नाता मुझसे
तब तक ही है जब तक तू यहाँ है
मेरे साथ
मुझे जीना है तो जी ले
क्योंकि मुझमें उलझा तो सुलझ ना पाएगा
मुझमें रमा तो तर ना पाएगा
तेरे जैसे बहुत मुसाफ़िर आए और गये
जो जीकर चला गया
मैं उसकी रही
जो मुझे जकड़ने में पड़ा
मैं बेवफ़ा हो गयी
क्या फ़र्क़ पड़ता है मैं तेरी हूँ या परायी
फ़र्क़ तो मुझे पड़ता है
क्योंकि मैं किसी की ना होकर भी सभी की हूँ
और सभी की होकर भी
किसी की नहीं हूँ
क्योंकि मैं ज़िंदगी हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
• सपना जैन