ताई
-सपना जैन
- ताई, अब नहीं खेलूंगी मैं ... मुझे जाना है
- अच्छा, बस एक और चांस …
- नहीं, नहीं ... आप फिर से जीत जाओगी और मैं फिर से हार जाउंगी, मुझे पता है …
इस बात पर ताई की वो ज़ोरदार हंसी मुझे आज भी याद है | 15 साल की लड़की से लेकर 35 साल की महिला का मेरा यह सफर ... लेकिन वो हंसी मैं आज भी नहीं भूली |
हमेशा से सबसे ज़्यादा मज़ा ताई के पास आता था क्योंकि वो खेलती थी हमारे साथ | जैसे ही स्कूल से आये और मौका पाकर भागे उनके पास, क्योंकि उनके घर और मेरे घर की दूरी इतनी थी नहीं |
ताई बोलती बहुत कम थी लेकिन ताश की क्वीन थी | आज तक मैंने तो उन्हें कभी भी हारते हुए नहीं देखा |
ताश के अलावा भी उनके पास हर तरह के इनडोर गेम्स रहते थे - लूडो, बिज़नेस, हाउजी और ताश की न जाने कितनी नयी-पुरानी गड्डियां |
घर का सारा काम खुद ही करती थी | नए-नए पकवान भी बनाती थी | उसके बावजूद अपने शौक के लिए समय निकाल लेती थी ... हाँ, शौक ही तो था उनका खेलना तभी तो मशगूल होकर खेलती थी हमारे साथ |
तभी दरवाजे की एक खटक ने मुझे 15 साल की लड़की के ओहदे से निकाल कर 35 साल की एक सभ्य पत्नी के रूप में लाकर खड़ा कर दिया |
एक ऐसी पत्नी जिसका पति अच्छा कमाता है लेकिन उसकी नज़र में पत्नी का काम सिर्फ घर संभालना ही है शायद | ये सोचते ही ताऊ का चेहरा मेरी नज़रों के सामने घूमने लगा जिन्होंने कभी ताई को समझा ही नहीं |
- “कहाँ खोई हो मैडम ... 8 बज चुके हैं ... मेरा ब्रेकफास्ट?”
- “बस अभी लाई,” ये कहकर मैं किचेन में चल दी | पति को नाश्ता देकर और उनका लंच टिफ़िन उनके हाथ में पकड़ाकर पति को विदा किया | दरवाजा बंद कर सोफे पर बैठ गयी और सोचने लग गयी कि एक पीढ़ी का अंतर है मुझमें और ताई में लेकिन हालात तो वही हैं | ताई को ताऊ ने शायद कभी नहीं समझा, सिर्फ खाना-पीना और सोना तक सीमित रहा उनके साथ | मेरी भी हालत तो वैसी ही है - खाना-पीना और सोना | पति का मतलब सिर्फ इस तक ही सीमित |
जब ताई की वो यादें मन को परेशान करने लग गयीं तो दवा की एक खुराक निकाली और गटक लिया पानी के साथ | इतने साल हो गए डिप्रेशन की दवा खाते हुए लेकिन डिप्रेशन कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है | तभी मेरी 8 साल की बच्ची सुन्नी निकली अपने कमरे से -
- “गुड मॉर्निंग मम्मा"
- “गुड मॉर्निंग बेटा”
उसने आकर मुझे हग किया | “मम्मा, हम कहीं हॉलिडे पर नहीं जा रहे?”
- “नहीं बेटा, पापा बिजी हैं न”
-“तो क्या हम कहीं जायेंगे ही नहीं! … मेरा तो सारा होम वर्क भी ख़तम हो गया है, मेरा टाइम कैसे निकलेगा अब”
वह अपने सर पर हाथ रखकर बुझे मन से अपने कमरे की ओर बढ़ने लग गयी तभी मैंने पीछे से बोला
- “आ जाओ सुन्नी ... कार्ड्स खेलते हैं”
- “कार्ड्स! पर मुझे तो खेलना भी नहीं आता”
- मैं सिखाऊंगी न!
इतना सुनते ही वो ख़ुशी से उछल पड़ी और कमरे में ताश तलाशने के लिए भागी
इसके बाद ही न जाने कैसी एक ख़ुशी ने मेरे अंदर जन्म लिया | एक ऐसी ख़ुशी जिसे आज तक कोई दवा या डॉक्टरी कंसलटेशन नहीं ला पाई थी |
मुझे आज इस बात का अहसास हुआ कि ताई खेल में मशगूल क्यों होती थी !
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