मीठी चाय नमकीन चाय
सपना जैन
“आइये-आइये मैनेजर साहब!आज रास्ता कैसे भटक गए?” मेरे घर में घुसते ही अमरचंद जी बोले |
उनके हाथ में पानी का पाइप था जिससे वो अपने घर के बरामदे में लगे खूबसूरत और घने पौधों को पानी दे रहे थे |
“बस इधर से सुबह की सैर करके निकल रहा था तो सोचा कि आपको एक अच्छी खबर सुना दें” मैंने एक बड़ी मुस्कान के साथ जवाब दिया
उन्होंने पानी का पाइप वहीं घास पर छोड़ा, नल बंद किया और अपने कंधे पर टंगे छोटे से तौलिये से हाथ पोंछते हुए मेरी तरफ गर्मजोशी से आगे बढ़े |
"तो लोन पास हो गया"
“वाह! आपने तो मेरे बोलने से पहले ही बोल दिया” मैंने हाथ मिलाते हुए कहा
"मेरे लिए इससे अच्छी खबर अभी कोई और नहीं हो सकती थी और ये अच्छी खबर को देने वाले भी आप ही हो सकते थे" ज़ोरदार ठहाके के साथ अमरचंद जी बोले |
उन्होंने मुझे पास पड़ी कुर्सी की ओर बैठने का इशारा किया और घर के अंदर दरवाजे पर जाकर आवाज़ लगाई "अरे, दो कप चाय बना दो" ऐसा कहकर तेजी से मेरी तरफ आये और पास पड़ी कुर्सी खींचकर मेरे सामने बैठ गए |
"मैंने सोचा की आज इतवार है तो क्यों एक दिन आपको इंतज़ार करवाऊं इसीलिए आपको बताने आपके घर आ गया” मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए बोला
“बहुत ही अच्छा काम किया आपने … आपके ही प्रयास का फल है” अमरचंद जी का धन्यवाद देने का ये तरीका मुझे बड़ा अच्छा लगा और मैं सोचने लगा कि अमरचंद जी सिर्फ अपने काम में ही नहीं बल्कि व्यवहार में भी बहुत कुशल हैं तभी उन्हें हर पीढ़ी के लोग पसंद करते हैं और उनका समाज में एक अच्छा और प्रतिष्ठित ओहदा है |
बैंक की नौकरी में जब मेरा तबादला 8 महीने पहले इस छोटे से शहर में हुआ था तब मुझे लगा था कि कैसे रहूँगा मैं एक छोटे से कस्बे में | लेकिन शुरुआती दिनों में अमरचंद जी ने मुझे यहाँ रहने में बड़ा साथ दिया |
अमरचंद जी ने मुझे तब तक अपने घर के बने खाने का टिफ़िन भेजा जब तक मुझे सोनू नहीं मिल गया | सोनू न कि सिर्फ अच्छा खाना बनाता है बल्कि मेरी हर छोटी-मोटी जरूरतें अच्छे से पूरी कर देता है | सोनू को मेरे पास लगवाने वाले भी अमरचंद जी ही हैं | अब जब अमरचंद जी मेरे पास अपने लोन के सिलसिले में आएंगे तो मैं तो हर संभव प्रयत्न उन्हीं के पक्ष में करूँगा, जो मैंने किया भी | मैंने बैंक के सारे नियम-कायदे के साथ और उससे बाहर होकर भी उनके लोन को पास करवाया |
"अब इस लोन से मैं पढ़ाई का एक अच्छा संस्थान खोलूंगा जिससे हमारे इस कस्बे के बच्चे बाहर जाकर पढ़ाई करने के लिए मज़बूर नहीं होंगे |" उन्होंने चैन की सांस लेते हुए बोला "अब हर कोई मेरे जैसे नहीं कर सकता न | मैंने अपने बेटे रमेश को शहर के बाहर पढ़ाई के लिए भेजा और अभी वो 2 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर अपने ऑफिस की तरफ से अमेरिका गया हुआ है | बहू तो हमारे पास ही है|”
"अच्छा, शादी भी हो गई बेटे की?" मैंने सहज भाव में पूछा
खुशी से वो बोले “1 साल पहले ही उसकी शादी भी की है | तब तक आपका तबादला यहाँ नहीं हुआ था |”
“ओह! मैंने दावत मिस कर दी" मैंने दोस्ताना अंदाज़ में कहा
"कोई बात नहीं! अब जब मैं दादा बनूँगा तब आपको डबल दावत दे दूंगा” अमरचंद जी ने ज़ोर का ठहाका लगाया
इतने में करीब 18 साल की एक लड़की अंदर से बाहर आई और अमरचंद जी के कन्धों पर पीछे से हाथ रखते हुए बोली "गुड मॉर्निंग पापा"
"अरे! गुड मॉर्निंग, गुड मॉर्निंग" अमरचंद जी उसका हाथ पकड़ कर आगे की ओर खींचते हुए बोले "मैनेजर अंकल को भी गुड मॉर्निंग बोलो”
"गुड मॉर्निंग अंकल" उसने मेरी तरफ मुखातिब होकर बोला | उसके बोलने में एक निडरता थी जो मुझे बहुत ही अच्छी लगी |
"मेरी बेटी निम्मो है ये" अमरचंद जी ने बहुत ही गर्वित होकर उससे मेरा परिचय कराया
मैंने प्रत्युत्तर में उसे गुड मॉर्निंग बोलने के बाद पूछा "क्या करती हो बेटा"
"अंकल ग्रेजुएशन 1st ईयर है" उसने उसी अंदाज़ में बोला
"गुड, आगे की क्या प्लानिंग है" मैंने यूँ ही पूछा
"मुझे जर्नलिस्ट बनना है"
"इतने छोटे से शहर में रहकर जर्नलिस्ट बनने का सपना, वाह!" मैंने अमरचंद जी की ओर प्रशंसनीय दृष्टि से देखकर बोला और फिर निम्मो की तरफ देखकर पूछा "लेकिन इसके लिए तो तुम्हें दिल्ली या मुंबई जैसे बड़े शहर जाना पड़ेगा, यहाँ या फिर आस-पास छोटे शहर में तो शायद ही इसकी पढ़ाई हो”
उसके बोलने के पहले ही अमरचंद जी बोल उठे "बिल्कुल, बस 3 साल यहाँ स्नातक करने के बाद इसको दिल्ली के टॉप कॉलेज में भेजूंगा, फिर ये वहां अपने सपने पूरे करेगी"
"पापा मैं जाती हूँ, मुझे क्लास के लिए लेट हो रहा है" निम्मो ने थोड़ा हड़बड़ी दिखाते हुए बोला
"हाँ, हाँ ! जाओ, जाओ ... " अमरचंद जी ने बोला और वो वहां से निकल गई | वो मेन दरवाजे तक पहुंची ही थी कि अमरचंद जी ने पीछे से आवाज़ लगाकर बोला "और सुनो, स्कूटी थोड़ा आराम से चलाकर जाना"
"हाँ पापा" कहते हुए वो वहां से निकल गई |
उसके जाने के बाद मैंने अमरचंद जी से बोला "मानना पड़ेगा, आपने अपने बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं रखा"
"रखना भी नहीं चाहिए, बेटे और बेटी में फर्क है भी तो नहीं ... जो बेटे कर सकते हैं वो सब बेटियां भी कर सकती हैं ... उन्हें मौका तो देकर देखिये" अमरचंद जी के ऐसा बोलते ही मेरे मन में जो उनके लिए सम्मान था वो और भी अधिक बढ़ गया और मैं सोचने लगा कि काश समाज का हर व्यक्ति ऐसा सोचने लगे तो कन्या भ्रूण हत्या की नौबत ही न आये | मैं ऐसा सोच ही रहा था कि तभी घर के अंदर परदे के पीछे हल्की सी आहट हुई और चूड़ियों की खनक सुनाई दी | मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही अमरचंद जी उठे और वहां पहुँच गए | जब वो पलटे तो उनके हाथ में चाय की ट्रे थी | वो आए और ट्रे टेबल पर रखकर चाय का एक कप मेरे हाथ में पकड़ाया और खुद एक कप चाय लेकर बैठ गए |
मैंने चाय की एक घूँट पी और बोला "चाय बहुत ही अच्छी है"
मेरी तारीफ में हाँ मिलाते हुए वो बोले "हाँ! चाय जब मीठी होती है तभी मजेदार लगती है"
मैंने साथ में आई नमकीन और बिस्किट के साथ चाय पी ... कुछ इधर-उधर की और भी बातें की ... फिर जाने के इजाजत मांगी | वो खड़े हुए और उनसे हाथ मिलाकर मैं घर के बाहर आ गया | बाहर पहुंचा ही था तभी मुझे एहसास हुआ कि घर की चाभी तो मैं अंदर ही भूल गया हूँ | मैं उल्टे ही पांव घर के अंदर लौटा | अमरचंद जी वहां नहीं थे लेकिन चाभी वहीँ टेबल पर रखी थी | मैं चाभी लेने के लिए लपका और तभी मुझे अमरचंद जी की आवाज़ घर के अंदर से आती सुनाई पड़ी |
"रमेश की माँ, बहू परदे के अंदर रहे तभी शोभा देती है | कोई बाहरी व्यक्ति बैठा है और ये परदे के पीछे चूड़ियां खनका रही हैं | कितनी बार तुम्हें समझाया है कि जब कोई बाहरी व्यक्ति आये तो चाय बहू के हाथ मत भेजो | आगे से ध्यान रखना समझी कि नहीं …
मुझे वो मीठी चाय नमकीन लगने लगी …
Kya baat hai...yahi duniya ka dastur hai...sasur kabhi pita nahi ban sakta per bahu se umeed karte gsi beti bane...kiyna dark hora gai ek beti aur bahu mai....nice blog
ReplyDeleteThank you for the comment
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