कोलाहल
- सपना जैन
नयी नयी शिफ्ट हुई थी मैं अपने मकान में | छोटे शहर से मेट्रो शहर में आकर बसना एक स्वप्न पूरा होने जैसा था | ऐसा नहीं कि मुझे छोटे शहर पसंद नहीं लेकिन वहां बसे हुए लोगों की छोटी मानसिकता से मुझे परहेज था | शायद इसीलिए लोगों से दूर अपनी ही स्वप्न दुनिया में रहना पसंद करती थी | इसके लिए कभी-कभी ही सही पर लोगों से घुलने-मिलने की नसीहत घर वाले दे ही डालते थे | लेकिन अपने इरादों की पक्की मैं अपनी ही दुनिया में मग्न रहना पसंद करती थी |
शादी हुई और मैं नॉएडा जैसे बड़े शहर में आकर बस गयी | 3 बैडरूम वाले फ्लैट में
ज़िन्दगी की शुरुआत हुई और मुझे उस छोटे से फ्लैट में एक स्वतंत्र ज़िन्दगी जीने का अहसास हुआ ये सोचकर कि यहाँ के लोग कम से कम खुले विचारों के होंगे और मुझे अपने रिजर्व स्वभाव से बाहर निकल कर लोगों से दोस्ती करने में शायद कोई दिक्कत नहीं होगी |
दिन के लगभग 11 बजे हुए थे और मेरे पति रजत जॉब पर गए हुए थे | रजत एक मल्टी नेशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के पद पर थे और अच्छी सैलरी होने से हम अच्छी सोसाइटी में रहना एफोर्ड कर पा रहे थे |
मैंने ग्रीन टी बनाई और कप लेकर अपनी बालकनी में बैठ गयी जहाँ से पूरी सोसाइटी का बेहद खूबसूरत नज़ारा नज़र आता था | आँखे बायीं और घुमाओ तो स्विमिंग पूल का नीला पानी लहराता दिखता था, जहाँ रंग-बिरंगी स्विमिंग ड्रेस में लड़के-लड़कियां और बच्चे स्विमिंग करते नज़र आते थे, कोई ब्रैस्टस्ट्रोक करता दिखता था तो कोई बटरफ्लाई स्ट्रोक, कोई एक्सपर्ट था तो कोई बिगिनर | दायीं और नज़र घुमाने पर बैडमिंटन का ग्राउंड था, जहाँ नेट लगाकर कुछ लोग खेलते रहते थे | कभी ग्रुप में कम्पटीशन होता था तो कभी सिंगल प्लेयर्स खेलते थे | और इन दोनों के बीचो-बीच एक बड़ा सा गार्डननुमा पार्क था जहाँ समय के अनुसार एक्टिविटी बदलती रहती थी | सुबह के वक़्त लोग वहां एक्सरसाइज़ करते थे, शाम के वक़्त बच्चों के साथ खेलते नज़र आते थे, वृद्ध लोगों के लिए सुबह-शाम वहां बैठकर बात-चीत करने का पसंदीदा स्थान था | यही ख़ास-बात थी इस सोसाइटी की कि अकेले होते हुए भी अकेलापन नहीं लगता था |
ग्रीन टी का एक घूँट पिया ही था कि दरवाजे की घंटी बजी | मैं बालकनी से उठकर दरवाजे की ओर बढ़ी और दरवाजा खोला | मेन गेट पर दो दरवाजे लगे थे- एक लकड़ी का और दूसरा लोहे की ग्रिल का लोहे की जाली के साथ | मैंने लकड़ी का दरवाजा खोला तो जाली
से देखने पर एक महिला नज़र आयी | चेहरे पर मुस्कान लिए वो बोलीं -
-
मैं आपके सामने वाले फ्लैट में रहती हूँ |
ये सुनकर मैंने दरवाजा खोला और उन्हें अंदर आने के लिए बोला | वो खुशी-खुशी अंदर आ गयीं और ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ गयीं |
मेरे कुछ बोलने से पहले ही बोल उठीं -
-आप लोग नये आये हैं शायद?
मैंने उनके सामने पड़े सोफे पर बैठते हुए कहा -
-हाँ,
इसी हफ्ते शिफ्ट हुए हैं …
उन्होंने मेरा जवाब ख़तम होने का इंतज़ार किये बगैर दूसरा सवाल पूछा -
-मैरीड?
-यस
-कितने साल हुए हुए शादी को?
मैनें थोड़ा हँसते हुए बोला-
-साल नहीं, अभी 20 दिन हुए हैं
वो थोड़ा झेंपते हुए बोलीं -
-ओह्ह्ह
, सॉरी …
मैनें कहा -
-इसमें सॉरी की क्या बात …
मैं नाम न जानने की वजह से उसके आगे नहीं बोल पायी और वो शायद मेरा इंटेंशन समझ गयीं और बोलीं
-मीना, मीना नाम है मेरा
-अच्छा, सॉरी की कोई बात नहीं मीना जी
-मैं शायद तुम्हारे बराबर उम्र की ही हूँ तो मुझे मीना ही बुला सकती हो …
अब मुझे मेरा नाम बताने की बारी थी -
-श्वेता, श्वेता नाम है मेरा
-हाँ, तो श्वेता, मैं कह रही थी कि 'जी' शब्द बहुत भारी-भरकम लगता है, तो क्यों न हम एक-दूसरे को नाम से बुलाएँ … मैं तुम्हे श्वेता और तुम मुझे मीना बुलाना |
-बिलकुल,
मैंने सर हिलाते हुए बोला और मैं थोड़ा उठते हुए बोली
-मैं चाय बनाकर लाती हूँ मीना
-अरे नहीं नहीं, अभी नहीं … मैं वाशिंग मशीन में कपड़े डाल कर छोड़ आयी थी | अब तो खैर दोस्ती हो ही गयी है तो आना-जाना और चाय-पानी तो चलता रहेगा | वो
मुस्कुरायी और उठकर जाने लगी | मैंने भी ‘बाय’ बोलकर फिर फुर्सत से आने का न्योता दे दिया |
उस दिन से हमारी अच्छी दोस्ती हो गयी | कभी शाम में साथ में वाक करना तो कभी बैडमिंटन खेलना, कभी चाय मेरे यहाँ तो कभी मीना के यहाँ | हमारी अच्छी बनने लगी |
मुझे अब मीना के बारे में सब पता था | मीना की शादी 20 साल की उम्र में हो गयी थी और उसकी 9 साल की शादी में 1 बेटा था जिसकी उम्र अभी 6 साल की थी | पति मयंक
RTO ऑफिस
में अच्छे पद पर थे |
जब मिलना जुलना आम हो जाता है और दोस्ती में अपनी सारी बातें ख़तम हो जाती हैं तो फिर शुरू होता है दूसरों की बातें करने का सिलसिला | यही हुआ मीना के साथ | चूँकि मेरी बोलने की आदत कम थी और मीना की ज़्यादा, तो वो अपनी आदतानुसार बोलती रहती थी और मैं एक अच्छे श्रोता की तरह सुनती रहती थी | उसने एक दिन बोला-
-अरे पहले फ्लोर पर जो रतिका रहती है न
मैंने हाँ में सर हिलाया
-वो फिर से प्रेग्नेंट है
मैंने बोला-
-तो इसमें क्या बुराई है
वो तपाक से बोली-
-अरे! दो-दो बेटियां पहले से ही हैं
मैंने बस बात को ख़तम करने के अंदाज़ में बोला-
-अरे ठीक है, सबकी अपनी लाइफ है
वो फिर बोली -
-बात अपनी लाइफ तक ही नहीं है न | बताओ, ‘हम दो हमारे दो’ के ज़माने में तीसरा बच्चा! वैसे भी पॉपुलेशन इतनी बढ़ गयी है, कुछ तो सोचना चाहिए न |
वो बोलती जा रही थी और मैं सुनती जा रही थी और साथ ही मुझे भी थोड़ा अटपटा ही लग रहा था कि आखिर तीसरा बच्चा क्यों? बेटे की ख्वाहिश में ही तो किया होगा न, कब बदलेगी मानसिकता, मैं ये सोच ही रही थी कि मीना के लगातार बोलते शब्द मेरे कानों में गए -
-मेरे तो पति ने पहले ही बोल दिया था कि बच्चा तो एक ही करेंगे इसीलिए मुझे 2 बार अबॉर्शन भी कराना पड़ा | जांच कराई थी छुप-छुपा के पैसे देकर | दोनों बार लड़की थी | अब बताओ एक ही बच्चा करना है तो लड़का होना चाहिए न …
उसके शब्द मेरे कानों में पड़ते जा रहे थे और मुझे लग रहा था जैसे मैं एक अजीब सी भीड़ में हूँ जो कोलाहल से भरी हुई है और मेरे शब्द बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं | मैं चीख रही हूँ ज़ोरों से लेकिन आवाज़ किसी तक जा ही नहीं रही | एक भयंकर कोलाहल था चारों ओर … और थी मेरी दबी हुई चीख |
speechless...
ReplyDeleteThank you
Deletenice story masi padh ker aisa laga ki aap se hi related hai mujhe bhi sikha doo������
ReplyDeleteHahahah ... kya sikha du?
DeleteTuching story
ReplyDeletePar yahi samaj hai
Samaj bhi to humse hi hai yani hum hi to samaj hain ...
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