इंसानों से क्या उम्मीद करें
जो है तो बर्बर पर सभ्यता का मुखौटा ओढ़े
खड़ा रहता है किसी ओट में
इस फ़िराक़ में कि
कब मुझे मौक़ा मिलेगा अपना अहं दिखाने का
कुछ शक्तिशाली बनने का
डरपोक है
तभी दिखाता है अपना रुतबा अपने से कमजोर जानवरों पर
जो बोल नहीं सकते उन बेबस जानवरों पर जुल्म ढाता है
गर्भवती हथिनी को देता है तड़पती मौत की सजा
रोज़ ही चलाता है कटारें निर्ममता से
और निगलता है कई जानों को अपनी लपलपाती जीभ से
तू इंसान नहीं है ऐ हैवान
उतार अपना मुखौटा और डूब मर उस चुल्लू भर पानी में
जिस नदी में उस हथिनी ने और उसके अजन्मे बच्चे ने तड़प तड़प कर दम तोड़ा
Composed by Sapna Jain
These lines are not written but an instant feeling which has come out this way.
#JusticeForElephant #Elephant #ElephantDeath #ElephantLivesMatter
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