The Poetry “ चटखारे ” is a beautiful poem depicting the life which is supposed to live happily either sweet or sour moment and it is provoking you to live in the moment and enjoy every phases of life, as life is an experience of sweet and sour moment.
अब वो स्वाद नहीं आता इमली के उन टुकड़ों में
जिन्हें जुबां पर लगाते ही चटखारे लेते थे
न जाने इमलियाँ नहीं रहीं वैसी , खट्टी ... मजेदार
या जुबां का स्वाद ही बदल गया है
पर इतना जरूर है कि जब डांट पड़ती थी दादी की
कि इतना खट्टा नहीं खाते , तब लगता था कि जब बड़े हो जाएंगे , अपनी मर्ज़ी के मालिक हो जाएंगे
तब देखते हैं कि दादी रोकती कैसे हैं
अब तो दादी भी नहीं हैं रोक-टोक के लिए
फिर इमली क्यों नहीं खाते वैसे जैसे खाते थे
अब इमली को देखकर मुंह में पानी नहीं आता
हां दांत जरूर खट्टे हो जाते हैं इमली देखकर ही
तभी लगा कि जब जी करे कर लो वो सब
क्योंकि बाद के लिए छोड़ दिया तो शायद बाद में अच्छा ही न लगे वो करना
अच्छा ही हुआ कि दादी से झगड़ कर खूब इमलियाँ खा ली
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