एक कप चाय की प्याली
लिए हाथ में
खिड़की पर टाँगे हुए चेहरा
कहीं दूर सपनों को देते हुए आकार
ये है मेरा शांति भरा जुनून
यही है मेरे “हिस्से का सुकून”
लोगों की भीड़ में भी ख़ुद की तलाश
अपने ही अंदर रोशनी की एक आस
कहीं दूर टिमटिमाते तारे में
पनपता है मेरी ख़ुशी का भ्रूण
ये है मेरे “हिस्से का सुकून”
यही है मेरे “हिस्से का सुकून”
चंद पल सिर्फ़ अपने साथ चली
कहीं दूर किसी ऊँचाई पर चढ़ी
टेढ़े-मेढ़े रास्ते में ढूँढा है मैंने
अपने जज़्बों का जुनून
ये है मेरे “हिस्से का सुकून”
यही है मेरे “हिस्से का सुकून”
गहरे झील के पानी में गोते खाती
मंज़िल की तलाश में सफ़र की लिए भूख
डूबती-उतराती पर फिर भी चलायमान
रहती है मेरी ये रूह
ये है मेरे “हिस्से का सुकून”
यही है मेरे “हिस्से का सुकून”
- सपना जैन
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