Writer & Entrepreneur

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DREAM CREATION

Thursday, November 8, 2012

विडम्बना


 कन्या भ्रूण हत्या की लोग बात करतें  हैं
पर लड़की  के उस बाप से पूछो जो
आज भी बेटी की शादी के लिए दर -दर ठोकरें खाता है
आज भी लड़के  वालों के सामने सर नीचा ही रखता  है
आज भी बेटी के जन्म लेते ही दहेज के लिए धन इकठ्ठा करने लगता है
आज भी बेटी होते ही एक अनजान डर के साये में रहने लगता है

लड़की की उस माँ से पूछो जो
आज भी लड़की पैदा करने के ताने सुनती है
आज भी लड़की को छुप छुप कर प्यार करती है
पर सबके सामने बयां नहीं करती है
आज भी लडकी होने पे घर वालों का मुह देखती है
जैसे उससे कोई गलती हो गई हो

माँ - बाप के लिए उसकी औलाद उसकी औलाद ही है
पर समाज के लिए लड़की - लड़के में फर्क है

पर विडंबना तो देखो हमारे महान भारतीय  समाज की 
अपनी बेटी के साथ कुछ  हो तो लड़ पड़ेंगे
पर दूसरों की बेटी को आज भी बेटी नहीं बहू समझेंगे
नहीं समझेंगे कि वो भी किसी की लाडली होगी
नहीं सोचेंगे कि अब तक वो भी एक बच्ची होगी

जो भी बात करता है कन्याभ्रूण हत्या रोकने की
तो उससे कहो कि
पहले वो समाज बदले
पहले बदले समाज के  हर व्यक्ति की ऐसी मानसिकता
पहले वो अपने आप को बदले
तब बात करे कि कन्या भ्रूण हत्या  रोको

तब तो कहने की ज़रुरत ही नहीं होगी
कन्या भ्रूण  हत्या जैसी कोई चीज़ ही नहीं होगी ।