Writer & Entrepreneur

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DREAM CREATION

Wednesday, September 11, 2013

band khidkiyon wale ghar



बन्द खिड़कियों वाले घर
published in “Bhartiya Rail ” Magazine (Monthly) in July 2013 edition


“बिटिया ... ओ बिटिया “
मेरी काम वाली की इस आवाज़ ने मुझे फिर से अपनी दुनिया में आने को मजबूर किया नहीं तो उससे बात करते वक्त तो जैसे मैं अपनी दुनिया में रहती ही नहीं थी | वैसे भी शादी को लेकर एक लड़की के सपने बहुत होते हैं, फिर जब बात अपनी पसंद के लड़के से शादी की हो, तब तो बात ही कुछ और होती है | नए-नए सपने, एक नयी ज़िंदगी की शुरुआत, एक नयी दुनिया बसाने के इरादे, ना जाने क्या क्या | मेरी शादी अपनी पसंद के लड़के से ही होने जा रही थी | शादी को 2-4 महीने बचे थे |
अपने होने वाले मंगेतर से “एक मिनट” कह कर मैंने अपने कान से मोबाइल हटाते हुए जोर से बोला “क्या हुआ काकी?”
वो हाल के दरवाजे पर खड़ी थी जोकि मेरे कमरे से थोड़ी दूरी पर था | वो वहीँ से बोली “बिटिया तनी पोछा लगाना है हाल में... जरा यहीं आके बैठ जाओ... मम्मी तुम्हारी छत पे हैं... ” उसने एक बार में ही सब कह दिया जिससे मैं ये ना कह सकूँ कि मम्मी से लगवाने के लिए बोल दो |
उसके इतना कहने तक मैं कमरे से बाहर आयी और हल्की सी मीठी झिड़की देते हुए कहा “कितनी बार तुमसे कहा है काकी, कि ये घर भी तुम्हारा ही है ... किसी के खड़े होने की क्या जरूरत है ... तुम अंदर जाकर अकेले भी सफाई कर सकती हो |”
“नहीं बिटिया ... तुम बस थोड़ी देर खड़ी हो जाओ ... मैं बहुत जल्दी लगा दूंगी “ उसने थोड़ा सा मनाने के लहजे में कहा | मेरे यहाँ ये काकी शायद तब से काम करती हैं जब मैं पैदा भी नहीं हुई थी ... लेकिन ये कभी भी किसी भी कमरे में अकेले नहीं जाती ... वैसे भी जो ज़्यादा शरीफ होता है उस पर बदनामी का दाग सबसे पहले लगता है, शायद इसी डर से ना जाती हों और वैसे भी हमारे भारतीय समाज में ये मानसिकता व्याप्त है कि घर में थोड़ा भी सामान इधर-उधर हुआ नहीं कि इलज़ाम सबसे पहले नौकरों पर ही आता है |
“अच्छा चलो मैं आती हूँ “ मुझे ये कहना ही पड़ा क्योंकि मैं उसकी आदत अच्छे से जानती थी | उससे ये कहने के बाद मैंने मोबाइल कानों से लगाया और “आई कॉल यू बैक विदइन फाईव मिनट ” कहकर फोन काट दिया |
वो पोछा लगा रही थी और मैं सोफे पर बैठी कुछ किताबें उलट-पलट रही थी | उसने मुझसे थोड़ा छेड़ने के अंदाज़ में पूछा  “फोन पे अपने होने वाले से बतिया रही थी का बिटिया?”
मुझे उसकी बातों पर हँसी आ गई और मैं बहुत जोरो से हँसी “हाँ...अपने होने वाले से ही बात कर रही थी”
“आजकल तो शादी के पहले ही सब बतियाने भी लगते हैं ... हम तो अपनी शादी में ये तक ना देखे थे कि शादी किससे हो रही है, वो तो ससुराल आये तब पता चला कि हमार आदमी कौन हैं “
“तो शादी कैसे कर ली ... ” मेरे ऐसे अचानक से बोलने पर वो हँसने लगी
“बिटिया अब हम लोग पढ़े लिखे कहाँ थे ... जो माँ-बाप कहि दें वही कर लेवत रहें और फिर शादी भी हमार-सबकी 14-15 साल में होई जाती रही” वो बोलती जा रही थी और मैं ये सोचती जा रही थी कैसे कोई बिना किसी को देखे -जाने शादी कर सकता है और कैसे अपनी पूरी ज़िंदगी किसी को सौंप सकता है |
मै ये सोच ही रही थी कि वो हँसते हुए बोली  “और बिटिया तुमका एक बात बताई? तुमका बहुत मज़ा आई” मैंने हल्का सा हँसते हुए कहा “बताओ”
“जब हमार शादी होई गई रहे तो हमका बैलगाड़ी से ससुराल आना रहे | हमार तो पूरा मुँह घूँघट से ढका रहे | कौन कहाँ बैठा ... हमको गाड़ी पर को बैठावा ... हमका कुछ नहीं दिखान ... रास्ता बहुत उबड़-खाबड़ वाला रहे ... गाड़ी मा जितनी बार धक्का लागे, उतनी बार एक लड़का हमार तरफ खिसक आवे ... हमको लगा कि जरूर ई लड़का हमार साथ छेड़खानी करे आवत है .... अगली बार जैसे ही ऊ आवा हम धर के चुटकी काट लिया ... ऊ जोर से चिल्लान ‘आईईई’... सब पूछे लाग कि का भवा ... लेकिन ऊ कुछ बतावा नाइ ... और पता है बिटिया शादी के 3-4 बरस बाद हमार आदमी हमका बताएं कि जुने लड़के के तुम चुटकी काटे रहे ... ऊ हमही रहे ... “ इतना कह कर वो जोर से हँसने लगी ... उसकी ऐसी बात पर और खास कर उसके बताने के अंदाज़ पर मुझे भी हँसी आ गई |
उसके बाद वो तो काम करके चली गई लेकिन मैं ये सोचती रह गई कि कैसे होता था पुराने ज़माने में | माँ-बाप जिसके साथ बाँध दे उसी के साथ जिंदगी बितानी पड़ती थी | लड़कियों की अपनी कोई राय, कोई पसंद-नापसंद होती ही नहीं थी | कैसे लोग थे ? फिर लगा कि चलो ये तो अब पुराने ज़माने की बात हो गई | अच्छा हुआ आज हमारा समाज शिक्षित हो गया है | यही सोच ही रही थी कि मेरे फोन की घंटी ने मेरा दिमाग वहाँ से हटाकर फिर मुझे मेरे सपनों की दुनिया में लेके चला गया और मैं बाते करने लग गई |
समय बीतता गया और मेरी शादी हो गई | मैं भारत की राजधानी दिल्ली में आकर रहने लगी | मेरी एक बड़ी कंपनी में नौकरी लग गई |
एक दिन मेरे से काफी सीनियर पोस्ट के अधिकारी बड़े खुश होते हुए ऑफिस आये | उनके हाथ में एक नामी दुकान की मिठाई का डब्बा था | मैंने पूछा “सर, आज मिठाई किस खुशी में मिलेगी?” उन्होंने चहकते हुए बोला “बेटे के लिए लड़की पसंद करके आया हूँ” ऐसा कहते हुए मिठाई का डब्बा मेरे सामने खोल के बढ़ाया | मैंने मिठाई का एक टुकड़ा लेते हुए कहा “भाई बधाई हो... लड़के को लड़की पसंद आ गई “
“अजी लड़के ने नहीं मैंने पसंद की है ... लड़के ने तो लड़की देखी भी नहीं ... और वैसे भी अभी वो क्या देखेगा ... अभी-अभी तो 21 साल का पूरा हुआ है” ये कहकर वो खुशी से आगे बढ़ गए औरों को मिठाई खिलाने, लेकिन मुझे मेरी काम वाली का चेहरा आँखों के सामने घूम गया और लगा कि मैं गलत थी ये सोचकर कि शायद ये पुराने ज़माने की बात हो गई | पर आज महसूस हुआ कि सब बदल गया लेकिन सोच आज भी वही है और आज भी हमारे समाज के अधिकांश लोग अपने घरों की खिड़कियाँ बन्द रखते हैं और बदबूदार इस घर में सांसे ले रहे हैं | अपने अधिकारी द्वारा दी गई मिठाई का टुकड़ा मुँह में रखा तो लगा कि मैं नीम की लकड़ी चबा रही हूँ ...
By-
Sapna Jain

Sunday, May 12, 2013

जैसी हूँ मै आज

 जैसी हूँ मैं आज 

कुछ  आती हैं यादें बचपन की 
कुछ दिखती हैं धुंधली सी तस्वीरें 
वो आपका हर पल साथ देना 
हर मुश्किलें कदम पर साथ खड़े रहना 
मेरी हर गलती को टालना, मेरी हर इच्छा को अपनाना 
बस थोड़ा सा हँसकर मेरी हर ख्वाहिश पूरी करना 

याद है मुझे वो खेल में हराना ताकि मै दुनिया से जीत सकूँ 
वो रात में मुझे डराना ताकि मै डर को भगा सकूँ 
वो सब तब लगता था क्यों करते हो आप 
पर आज समझी उसका मतलब 
मुझे ज़िंदगी के लिए तैयार करते थे आप 

आज भी याद है वो बेड पर तकियों से लड़ना 
और मेरे हार जाने वा मुँह फुला लेने पर आपका वो कहना 
"तुम्हें अपने अंदर कोई कमजोरी नहीं रखनी है "

खेल की टीम में आपके होने पर मेरी उस निश्चिन्तता को भगाना 
कि आप हैं तो मै जीतूंगी ही...पर आपका वो कहना 
"यहाँ हम सिर्फ प्रतिस्पर्धी हैं"

तब लगता था ये क्यूँ कहते हो आप !!!
पर आज समझ आया कि मुझे ज़िंदगी के लिए तैयार करते थे आप 

आज जब ज़िंदगी के साथ रूबरू होती हूँ
और ज़िंदगी के हर पल को जीतती हुई चलती हूँ 
तब आती है याद कि आपने मुझे तैयार किया है ये दुनिया जीतने के लिए 
और बिल्कुल वैसे जैसी हूँ मैं आज ||


These are the deep heart feelings for my caring and loving brother... he is the best brother in this world.
i love him a lot.

Wednesday, February 27, 2013

कुछ अधूरापन सा है तुम बिन

वैसे ही निकलता है चाँद रात में
और दिन को उजाला देता है सूरज
वैसे ही चहकती हैं चिड़ियाँ भोर में
और टिमटिमाते हैं तारे रात में

पर  नहीं होती वैसी रातें और वो दिन
क्योंकि कुछ अधूरापन सा है तुम बिन ||

वो तुम्हारा प्यार से थपकी देकर सुलाना
और प्यार भरी नज़रों से सुबह जगाना
मेरा बेवजह रूठना और तुम्हारा बातों बातों में मनाना
तुम्हारा ज़िंदगी में यूं आना और हर बार हार जाना

पीछा करता है मेरा पूरे दिन
क्योंकि कुछ अधूरापन सा है तुम बिन ||

तुम्हारा  हर वो एहसास और तुम्हारी हर धड़कन
मेरे थोड़ा भी दूर होने पर तुम्हारी वो तड़पन
तुम्हारा प्यार, तुम्हारा साथ
तुम्हारे जज्बात और तुम्हारी हर बात

बातें करते हैं मुझसे पूरा दिन
क्योंकि कुछ अधूरापन सा है तुम बिन ||