Writer & Entrepreneur

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DREAM CREATION

Tuesday, December 1, 2020

कैकेयी - नाम या अभिशाप



गलत क्या था 
जो मैंने किया 
लेकिन एक पल में मुझे प्रेयसी से घृणा का पात्र बना दिया 
जब तक मैं उनके हर पल में साथ थी 
युद्ध के मैदान में अपनी जान हथेली पर रखकर 
अपने प्रियतम पति की जान की रक्षा की थी 
तब तक मैं प्यारी कैकेयी थी 
और जिस दिन मैंने अपने हक़ का एक हिस्सा माँग लिया 
तो मैं कुल्टा कैकेयी हो गयी 

इस पितृसत्तात्मक सत्ता की पराकाष्ठा तो देखो 
पति के साथ बेटा भी औरत के खिलाफ़ हो गया 
रिश्ते-नातों के आगे पुरुष का अहम 
ऊँचा उठ गया 
मेरे भरत ने मुझे देखने से मना कर दिया 
और उसने भी मुझे घृणा का पात्र बना दिया 
सबने भरत की जय-जयकार की 
लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि
ये बोल कौन रहा है 
भरत या उसके वो संस्कार 
जो मैंने ही उसमें बोए 

इतिहास गवाह है कि 
माँ जो संस्कार बच्चों को देती है 
बच्चा वैसा ही होता है 
तो प्रजा को तो ये सोचना चाहिए 
कि अगर मैं शुरू से ही चाहती कि भरत को ही सब मिले 
तो मैं भ्रात प्रेम का अंकुर ही क्यों डालती 
घृणा ना भर देती 
लेकिन नहीं 
ये पितृसत्तात्मक सत्ता के पुरुष 
हर अच्छी हो रही चीज़ों का श्रेय अपने पर लेते हैं 
और थोड़ा भी कुछ बुरा हो तो सारा दोषारोपण 
एक स्त्री पर ही करते हैं 

जिस राम को मैंने दिल से अपना पुत्र माना 
अगर वो चाहता तो मुझ पर लांछन लगने ना देता 
घर की बात घर में ही रहती 

मैंने कुछ ग़लत तो नहीं किया था 
तब भी अपनी गलती मान कर मैंने राम से विनती की 
घर लौट चलने को गिड़गिड़ायी उसके आगे उसकी माँ 
लेकिन वहाँ भी वही पुरुष अहम आड़े आ गया 
और राम ने मुझ पर लगे लांछन का दाग 
और गहरा कर दिया 

मेरी एक छोटी सी माँग को इतना बुरा कर दिया 
कि कैकेय नरेश की पुत्री का नाम कैकेयी 
आज किसी भी माँ-बाप के लिए अपनी बेटी का रखा जाना 
अभिशाप बन गया 

Written by - 
Sapna Jain

Please Note : This content is not for hurting anybody’s feel and emotion but being a writer i have a sense of empathy in me and try to put myself at the place of the character i am writing for. Usually in our society where Ram is an ideal and Kaikeyi is considered as a bad character but i am daring to write for her who was not exactly as wrong as she was picturised. 
This is my perception what i write. No arguments i want to involve in. 
Thank you 

Picture taken from Wikiwand

Monday, November 9, 2020

कभी कभी लगता है | Kabhi-Kabhi Lagta Hai | Poem | मन की उड़ान | Man ki Udaan by Sapna Jain


कभी कभी लगता है | Kabhi-Kabhi Lagta Hai | Poem | मन की उड़ान | Man ki Udaan by Sapna Jain
Title : कभी कभी लगता है
Written n Voice : Sapna Jain

This is a feel which has come out into a form of poem and written on paper and later converted into #Audio / #Podcast.  

Saturday, October 31, 2020


Devata / देवता is a Hindi story written by a Well known Senior Hindi Writer Dr. Madhukar Gangadhar who is the Retd. Director of All India Radio. He is the writer of around 100 Stories, Novels, Poems etc.

Story telling by Sapna Jain
 

शरद पूर्णिमा का चाँद


 

शरद पूर्णिमा का चाँद ठंडक आने की दस्तक देता है और मानसून को अलविदा कहता है । वैसे तो इसे भारत में अलग-अलग तरीक़े से मनाने की परम्परा है जिसका वर्णन यहाँ करना मेरे इस लेख का अभिप्राय नहीं है ।
शरद पूर्णिमा के बारे में सोचकर मुझे अपना बचपन याद आया और मैं लिखने बैठ गयी ।
आज की रात होती थी सुई में धागा पिरोने की रात । चाँद निकलते ही मैं और भैया मम्मी-डैडी के साथ छत पर पहुँच जाते थे और चाँद की रोशनी में सुई में धागा डालने की जद्दोजेहद शुरू होती थी । ऐसा मानना था कि जिसने चाँद की रोशनी में सुई के बारीक छेद में धागा पिरो दिया, मतलब उसकी आँखें एकदम सही हैं और उसे चश्मा नहीं लगाना पड़ेगा । मैं तो इसी डर में धागा पिरोती थी कि अगर मैं ऐसा ना कर पायी तो कहीं चश्मा ना लग जाए । मुझे याद है कि मम्मी बड़े छेद वाली बड़ी सुई भी अपने साथ रखती थी कि कहीं ऐसा ना हो कि मैं छोटी हूँ और छोटे छेद वाली सुई में धागा नहीं डाल पायी तो मुझे समझा सकें और मैं रोऊँ ना ।
आज की रात चाँद को कुछ देर खुली और बड़ी आँखें फैलाकर देखना होता था । इसके अलावा एक और चीज़ होती थी जो मुझे बहुत पसंद थी । मम्मी देसी घी में चीनी और काली मिर्च मिलाकर छत पर चाँद के नीचे पूरी रात रखती थी और ऊपर से एक मलमल का कपड़ा ढाँक दिया करती थी जिससे उसमें कीड़े-मकौड़े ना पड़ें और दूसरे दिन सुबह उठकर बासी मुँह उसे खाना होता था । ऐसा मानना था कि आज की रात चाँद से अमृत झरता है ।
ये लिखने के साथ ही मैं उठकर बालकनी की ओर गयी कि देखूँ तो शरद पूर्णिमा का चाँद कैसा दिख रहा है, लेकिन ऊँची-ऊँची बिल्डिंग ने चाँद को पता नहीं कहाँ छुपा रखा है । शायद बचपन वाला चाँद जोकि छत पर चढ़ते ही दिख जाता था, उसे देखने के लिए मुझे चाँद के साथ लुका-छिपी का खेल करना पड़ेगा और इंतज़ार करना पड़ेगा कि शायद चाँद अभी किसी बिल्डिंग की ओट से झांकेगा और अपने अमृत की धार मुझ पर बरसाएगा जिसे मैं अपनी आँखें फैलाकर गृहण करूँगी ।
सुई और धागा लिए मैं यहीं खड़ी हूँ ।

Written by

Sapna Jain 

31st October 2020

Friday, September 11, 2020

कैसे कह दूँ कि मैं सम्पूर्ण हूँ

 


कई टुकड़ों से मिलकर बनी हूँ 
कैसे कह दूँ कि मैं सम्पूर्ण हूँ ||

जन्म दिया माँ ने और डाले अपने गुण
सिखाया हमेशा अपने से भी आगे बढ़ना 
पिता ने सिखाये जीवन के अक्षर
बांटे अपने खुद के अनुभव 
कतरों - कतरों में सीखकर उम्र बढ़ी
कैसे कह दूँ कि मैं पूर्ण हूँ
कई टुकड़ों से मिलकर बनी हूँ 
कैसे कह दूँ कि मैं सम्पूर्ण हूँ ||

ज़िन्दगी के थपेड़ों ने सिखाया संघर्ष 
और बनी एक नई दास्ताँ 
एक नन्हीं चीटी ने सिखाया लगन
प्रकृति के हर पत्तों  ने डाली जान
संघर्षों से लड़कर मजबूत बनी
कैसे कह दूँ कि मैं पूर्ण हूँ 
कई टुकड़ों से मिलकर बनी हूँ 
कैसे कह दूँ कि मैं सम्पूर्ण हूँ ||

जब भी कभी आता है अहम् कि मैं पूर्ण हूँ 
मुझसे बढ़कर कुछ नहीं 
तभी देखती हूँ आइने में अपनी झलक
और नज़र आती हैं दरारें 
कई हिस्सों में बंटकर जुड़ी हुई 
कैसे कह दूँ कि मैं पूर्ण हूँ 
कई टुकड़ों से मिलकर बनी हूँ 
कैसे कह दूँ कि मैं सम्पूर्ण हूँ ||

उम्र के एक पड़ाव पर
जब बिछड़ जायेंगे सब 
फिर एक नन्हीं कली लेगी जन्म 
टुकड़ों से पूर्ण बनने को
तिनकों - तिनकों से मिलकर खड़ी हुई 
कैसे कह दूँ कि मैं पूर्ण हूँ 
कई टुकड़ों से मिलकर बनी हूँ 
कैसे कह दूँ कि मैं सम्पूर्ण हूँ ||

Sapna Jain
26th September 2019


Wednesday, June 3, 2020

ऐ हैवान

इंसानों से क्या उम्मीद करें
जो है तो बर्बर पर सभ्यता का मुखौटा ओढ़े
खड़ा रहता है किसी ओट में
इस फ़िराक़ में कि 
कब मुझे मौक़ा मिलेगा अपना अहं दिखाने का 
कुछ शक्तिशाली बनने का 
डरपोक है 
तभी दिखाता है अपना रुतबा अपने से कमजोर जानवरों पर 
जो बोल नहीं सकते उन बेबस जानवरों पर जुल्म ढाता है 
गर्भवती हथिनी को देता है तड़पती मौत की सजा
रोज़ ही चलाता है कटारें निर्ममता से 
और निगलता है कई जानों को अपनी लपलपाती जीभ से 
तू इंसान नहीं है ऐ हैवान 
उतार अपना मुखौटा और डूब मर उस चुल्लू भर पानी में
जिस नदी में उस हथिनी ने और उसके अजन्मे बच्चे ने तड़प तड़प कर दम तोड़ा 

Composed by Sapna Jain 

These lines are not written but an instant feeling which has come out this way.
#JusticeForElephant #Elephant #ElephantDeath #ElephantLivesMatter